Pessimism to Optimism  

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दो रातोंके बीच एक छोटासा दिन बेचारा है... क्या करे?
नही नही...एसा न सोचो...

दो दिनोँ के बीच एक छोटी सी रात है
रात के इधर एक दिन, रात के उधर एक दिन
दिन दो हैँ, बस रात एक है.
कर लो जो चाहो, बन लो जो चाहो
आज है तुम्हारा, और कल भी तुम्हारा है !!

दो घाटोँ के बीच, एक पतली सी धारा है
घाट नहीँ चलते, धारा चलती है
पतली सी धारा, जाकर समन्दर से मिलती है
समन्दर से मिलती है, और मिलकर खो जाती है
घाट, घाट ही रहते हैँ, वो समन्दर हो जाती है !!

समन्दर को बान्धे, ऐसा कोई घाट नहीँ
कदमोँ को थामे, ऐसी कोई बात नहीँ
कर लो जो चाहो, बन लो जो चाहो
तुम कर नहीँ सकते ऐसा कहीँ कुछ भी नहीँ
इसलिए, यह न कहना कभी क्या करेँ, कैसे करेँ !!!

मै कर सकता हुं, मै करता हुं,
मुझे करना ही है.. मै करुगां..
मै कर सकता नही ऐसा कही कुछ भी नही...!

This entry was posted Saturday, December 26, 2009 and is filed under . You can follow any responses to this entry through the .

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